बाल एवं युवा साहित्य >> भारत के पड़ोसी देश भारत के पड़ोसी देशभगवतशरण उपाध्याय
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भारत के पड़ोसी देशों का वर्णन...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भारत के पड़ोसी देश
जैसे गांवों और नगरों में हमारे पड़ोसी होते हैं, वैसे ही देशों में भी
पड़ोसी बसता है, देश में भी आपस में पड़ोसी होते हैं, और जैसे पड़ोस में
पड़ोसियों के बीच कभी-कभी झगड़ा हो जाता है वैसे ही पड़ोस के देश भी जब-तब
आपस में टकरा जाया करते हैं, उनमें युद्ध छिड़ जाया करता है। पर देशों के
बीच युद्ध गांवों-नगरों के पड़ोसियों के साथ विवाद हो जाने के ही समान
नहीं हुआ करता।
देशों के आपसी तनाव से जो लड़ाई छिड़ती है, उससे देश के देश बर्बाद हो जाते हैं। वर्षों वहां बसने वाले बर्बादी के शिकार होते रहते हैं। मंहगाई, भुखमरी, अकाल, बीमारी सभी उनके नाश के लिए एकाएक सिर उठा लेते हैं और देश कंगाल और व्याधियों के शिकार हो जाते हैं। हमारे देश के एक बहुत प्राचीन राजनीतिक पण्डित चाणक्य ने कहा है कि पड़ोसी देश एक-दूसरे के स्वाभाविक शत्रु होते हैं। स्वाभाविक शत्रु का तात्पर्य है ऐसे आपसी शत्रु जिनको एक-दूसरे के लिए बैर सिखाना नहीं पड़ता, वह जन्मजात होता है—जैसे बिल्ली-चूहे का बैर, कुत्ते-बिल्ली का बैर, सांप-मेंढक का बैर, सांप-नेवले का बैर।
ऐसे ही चाणक्य की राय में देश-विदेश में बैर होता है, विशेषकर पड़ोसी देशों में। कारण, कि अगर एक देश अपनी सीमाएँ बढ़ाना चाहे तो वह अपनी हदें अपने पड़ोसी की धरती पर ही बढ़ायेगा। इससे पड़ोसी देशों में स्वाभाविक बैर की सम्भावना सदा बनी रहती है। पर जैसे गांव-नगर के रहने वालों के बीच, पड़ोसियों के बीच शत्रुता हो जाने पर उनका चैन की नींद सोना हराम हो जाता है, वैसे ही पड़ोसी देशों के बीच तनाव हो जाते हैं उनकी शांति भंग हो जाती है। दोनों पहले एक-दूसरे को तेवर चढ़ाकर धमाकाते हैं, फिर एक-दूसरे से लड़ने की तैयारियाँ करने लग जाते हैं, संहार करने वाले हथियार बनाने लगते हैं, उन्हें खरीदने लगते हैं और एक दिन आपस में टकरा जाते हैं, और जिन्हें एक-दूसरे का दोस्त होना चाहिए था वे एक-दूसरे का संहार करने को तत्पर हो जाते हैं।
हम लड़ाई क्यों करते हैं ? अपने पड़ोसी से टकराते क्यों हैं ? उनके साथ मरने-मारने को तैयार क्यों हो जाते हैं ? क्योंकि हमारे स्वार्थ टकरा जाते हैं। क्योंकि हमारे पड़ोसी सम्पन्न हैं, हम कंगाल हैं। क्योंकि पड़ोसी के पास कुछ है जो हमारे पास नहीं है, पर जो हमें भी चाहिए। क्योंकि वह हमारी सीमाओं पर अकारण उपद्रव करता है। सैनिक जमाता है। हमारे क्षेत्र में बम बरसाता है। लड़ाई से बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने पड़ोसियों से, पड़ोसी देशों से, मेल-मुहब्बत से रहें, और यह हम तभी कर सकते हैं जब हम पहले उन्हें जानें, उनकी आवश्यकताओं, दुर्बलताओं, उनकी बुराइयों-अच्छाइयों को जानें। अक्सर हम परस्पर लड़ते हैं इसलिए कि एक-दूसरे को भली-भांति जानते नहीं।
अगर सही-सही एक-दूसरे को जान पायें तो एक-दूसरे के लिए हमारे दिलों में हमदर्दी भी हो, एक-दूसरे की तकलीफ बांटने की भी चिंता और प्रयास करें। इससे एक-दूसरे को जानना पहले आवश्यक होता है।
इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने कहा है कि ज्ञान दुनिया में सबसे बड़ी चीज है। गीता कहती है कि ज्ञान से बड़ा पवित्रता-शान्ति का कोई कारक नहीं—‘ न हि ज्ञानेन सदृशम् पवित्रमिह विद्यते।’ जिसने यह जाना वह राग-द्वेष से, संसारी झगड़ों से मुक्त हो गया। सबसे आवश्यक चीज़ इसलिए यह ज्ञान या जानकारी है। हमें हमारे पड़ोसियों का ज्ञान होना चाहिए और वह ज्ञान ताक-झांक कर, छिपे तौर से भेद लेकर नहीं, पूछकर, पढ़कर होना चाहिए।
हमारे पड़ोसियों में अनेक ऐसी बातें होंगी जिनको देख सुनकर, समझ-बूझकर, हम अपनी दशा सुधारेंगे। अपनी और उनकी मदद करेंगे। लेकिन उसका मतलब यह नहीं कि हम अपने खूफिया-तंत्र को एकदम ही पंगु कर दें। भेदिया न रखें। ‘इंटेलीजेंस एजेंसियों’ को ताक पर रख दें। इतिहास साक्षी है कि जब-जब किसी देश ने ऐसी गलती की है, वह बर्बाद हो गया है। अभी डेढ़ वर्ष पहले ही विश्व-शक्ति अमेरिका पर आत्मघाती विमानों से हमला कर तालिबान ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। विश्व-प्रसिद्ध ‘ट्रेड-टावर’ और सैन्य-केन्द्र तबाह हो गये।
हमारे पड़ोसी देश कौन से हैं ? हमारे देश की सीमाएं किन देशोंको छूती हैं। हमारे पड़ोसी देश हैं—पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस, चीन, नेपाल, बर्मा और श्रीलंका। यही हमारे दोस्त और दुश्मन हो सकते हैं। इनसे ही हमारे प्रेम और कलह हो सकते हैं। इनको हम दोस्त मानते हैं, इनसे मेल-मुहब्बत बढ़ाना चाहते हैं, दुश्मनी और कलह नहीं करना चाहते हैं। और इनसे अपना मेल-मुहब्बत बढ़ाने के लिए हम पहले इनको जानना चाहेंगे। आइए, हम इन्हें जानें।
देशों के आपसी तनाव से जो लड़ाई छिड़ती है, उससे देश के देश बर्बाद हो जाते हैं। वर्षों वहां बसने वाले बर्बादी के शिकार होते रहते हैं। मंहगाई, भुखमरी, अकाल, बीमारी सभी उनके नाश के लिए एकाएक सिर उठा लेते हैं और देश कंगाल और व्याधियों के शिकार हो जाते हैं। हमारे देश के एक बहुत प्राचीन राजनीतिक पण्डित चाणक्य ने कहा है कि पड़ोसी देश एक-दूसरे के स्वाभाविक शत्रु होते हैं। स्वाभाविक शत्रु का तात्पर्य है ऐसे आपसी शत्रु जिनको एक-दूसरे के लिए बैर सिखाना नहीं पड़ता, वह जन्मजात होता है—जैसे बिल्ली-चूहे का बैर, कुत्ते-बिल्ली का बैर, सांप-मेंढक का बैर, सांप-नेवले का बैर।
ऐसे ही चाणक्य की राय में देश-विदेश में बैर होता है, विशेषकर पड़ोसी देशों में। कारण, कि अगर एक देश अपनी सीमाएँ बढ़ाना चाहे तो वह अपनी हदें अपने पड़ोसी की धरती पर ही बढ़ायेगा। इससे पड़ोसी देशों में स्वाभाविक बैर की सम्भावना सदा बनी रहती है। पर जैसे गांव-नगर के रहने वालों के बीच, पड़ोसियों के बीच शत्रुता हो जाने पर उनका चैन की नींद सोना हराम हो जाता है, वैसे ही पड़ोसी देशों के बीच तनाव हो जाते हैं उनकी शांति भंग हो जाती है। दोनों पहले एक-दूसरे को तेवर चढ़ाकर धमाकाते हैं, फिर एक-दूसरे से लड़ने की तैयारियाँ करने लग जाते हैं, संहार करने वाले हथियार बनाने लगते हैं, उन्हें खरीदने लगते हैं और एक दिन आपस में टकरा जाते हैं, और जिन्हें एक-दूसरे का दोस्त होना चाहिए था वे एक-दूसरे का संहार करने को तत्पर हो जाते हैं।
हम लड़ाई क्यों करते हैं ? अपने पड़ोसी से टकराते क्यों हैं ? उनके साथ मरने-मारने को तैयार क्यों हो जाते हैं ? क्योंकि हमारे स्वार्थ टकरा जाते हैं। क्योंकि हमारे पड़ोसी सम्पन्न हैं, हम कंगाल हैं। क्योंकि पड़ोसी के पास कुछ है जो हमारे पास नहीं है, पर जो हमें भी चाहिए। क्योंकि वह हमारी सीमाओं पर अकारण उपद्रव करता है। सैनिक जमाता है। हमारे क्षेत्र में बम बरसाता है। लड़ाई से बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने पड़ोसियों से, पड़ोसी देशों से, मेल-मुहब्बत से रहें, और यह हम तभी कर सकते हैं जब हम पहले उन्हें जानें, उनकी आवश्यकताओं, दुर्बलताओं, उनकी बुराइयों-अच्छाइयों को जानें। अक्सर हम परस्पर लड़ते हैं इसलिए कि एक-दूसरे को भली-भांति जानते नहीं।
अगर सही-सही एक-दूसरे को जान पायें तो एक-दूसरे के लिए हमारे दिलों में हमदर्दी भी हो, एक-दूसरे की तकलीफ बांटने की भी चिंता और प्रयास करें। इससे एक-दूसरे को जानना पहले आवश्यक होता है।
इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने कहा है कि ज्ञान दुनिया में सबसे बड़ी चीज है। गीता कहती है कि ज्ञान से बड़ा पवित्रता-शान्ति का कोई कारक नहीं—‘ न हि ज्ञानेन सदृशम् पवित्रमिह विद्यते।’ जिसने यह जाना वह राग-द्वेष से, संसारी झगड़ों से मुक्त हो गया। सबसे आवश्यक चीज़ इसलिए यह ज्ञान या जानकारी है। हमें हमारे पड़ोसियों का ज्ञान होना चाहिए और वह ज्ञान ताक-झांक कर, छिपे तौर से भेद लेकर नहीं, पूछकर, पढ़कर होना चाहिए।
हमारे पड़ोसियों में अनेक ऐसी बातें होंगी जिनको देख सुनकर, समझ-बूझकर, हम अपनी दशा सुधारेंगे। अपनी और उनकी मदद करेंगे। लेकिन उसका मतलब यह नहीं कि हम अपने खूफिया-तंत्र को एकदम ही पंगु कर दें। भेदिया न रखें। ‘इंटेलीजेंस एजेंसियों’ को ताक पर रख दें। इतिहास साक्षी है कि जब-जब किसी देश ने ऐसी गलती की है, वह बर्बाद हो गया है। अभी डेढ़ वर्ष पहले ही विश्व-शक्ति अमेरिका पर आत्मघाती विमानों से हमला कर तालिबान ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। विश्व-प्रसिद्ध ‘ट्रेड-टावर’ और सैन्य-केन्द्र तबाह हो गये।
हमारे पड़ोसी देश कौन से हैं ? हमारे देश की सीमाएं किन देशोंको छूती हैं। हमारे पड़ोसी देश हैं—पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस, चीन, नेपाल, बर्मा और श्रीलंका। यही हमारे दोस्त और दुश्मन हो सकते हैं। इनसे ही हमारे प्रेम और कलह हो सकते हैं। इनको हम दोस्त मानते हैं, इनसे मेल-मुहब्बत बढ़ाना चाहते हैं, दुश्मनी और कलह नहीं करना चाहते हैं। और इनसे अपना मेल-मुहब्बत बढ़ाने के लिए हम पहले इनको जानना चाहेंगे। आइए, हम इन्हें जानें।
पाकिस्तान
पहले पाकिस्तान। पाकिस्तान हमारे ही शरीर का अंग है और हम उसका भला चाहते
हैं। 1947 तक वह भारत का ही भाग था, अब उससे अलग है। भारत को अंग्रेजों से
आजादी मिलते ही पाकिस्तान अस्तित्व में आया। भारी खून-खराबे के बीच यह
पैदा हुआ। वह हमारे देश के दोनों ओर था, पश्चिम भी, पूरब भी, हमारे बाहर
भी, भीतर भी। जो बाहर है उसे पश्चिमी पाकिस्तान कहते थे। जो भीतर था उसे
पूर्वी पाकिस्तान। पर अब पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बन गया है।
पश्चिमी पाकिस्तान को नक्शे में देखिए। वह भारत से उसकी उत्तर-पश्चिम सीमा से लगा हुआ है। उसकी सीमाएं हमारे कश्मीर से, पंजाब से, राजस्थान से, कच्छ और मुम्बई से लगी हुई हैं। पाकिस्तान में कई सूबे शामिल हैं—पंजाब, सीमाप्रान्त, सिन्ध, बलूचिस्तान। सिन्ध और सीमाप्रान्त से लगा बलूचिस्तान है। उसके परे ईरान है। सीमाप्रान्त के भीतर, उसके उत्तर-पश्चिम और पाकिस्तान अफगानिस्तान के बीच कुछ वीर पठान जातियाँ रहती हैं जो कभी सर न हो सकीं। उनके सर कलम हो गए पर वे कभी सर न हुईं।
पश्चिमी पाकिस्तान को नक्शे में देखिए। वह भारत से उसकी उत्तर-पश्चिम सीमा से लगा हुआ है। उसकी सीमाएं हमारे कश्मीर से, पंजाब से, राजस्थान से, कच्छ और मुम्बई से लगी हुई हैं। पाकिस्तान में कई सूबे शामिल हैं—पंजाब, सीमाप्रान्त, सिन्ध, बलूचिस्तान। सिन्ध और सीमाप्रान्त से लगा बलूचिस्तान है। उसके परे ईरान है। सीमाप्रान्त के भीतर, उसके उत्तर-पश्चिम और पाकिस्तान अफगानिस्तान के बीच कुछ वीर पठान जातियाँ रहती हैं जो कभी सर न हो सकीं। उनके सर कलम हो गए पर वे कभी सर न हुईं।
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विनामूल्य पूर्वावलोकन
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